जिनके पास अपने है वो अपनों से झगड़ते हैं,
नहीं जिनका कोई अपना वो अपनों को तरसते है..
आईना आज फिर रिशवत लेता पकडा गया,
दिल में दर्द था ओर चेहरा हंसता हुआ पकडा गया..
सख़्त हाथों से भी छूट जाती हैं कभी कभी उँगलियाँ,
रिश्ते ज़ोर से नही तमीज़ से थामने चाहिए..
नफरत करना तो कभी सिखा ही नही,
हमने दर्द को भी चाहा है अपना समझकर..
मैंने समुन्दर से सीखा है जीने का सलीका,
चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना..
मुद्दत हो गयी, कोइ शख्स तो अब ऐसा मिले,
बाहर से जो दिखता हो, अन्दर भी वैसा ही मिले..
शिकायत तो नही लेकिन इतना जरुर पूछना चाहता हूँ जमाने से,
आखिर वो क्या करे जो जमाने के ही जुल्म से मजबूर हो जाये ..
लिखती हूँ सिर्फ़ खुद को बहलाने को,जानती हूँ ,
उनके पास मेरे अल्फाज़ पढ़ने की फुर्सत नहीं।
खामोश रहने दो लफ़्ज़ों को, आँखों को बयाँ करने दो हकीकत,
अश्क जब निकलेंगे झील के, मुक़द्दर से जल जायेंगे अफसाने..
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